अनचाही पीड़ा

Published जनवरी 16, 2018 by Voyger

“अरे श्यामा, यह क्या, तेरी शक्ल क्यूँ उतरी हुई है, खुशी की जगह यह मायूसी और आँखों में गुस्से और अपमान के बिन्दु चमक रहे हैं”, मैंने अपनी बचपन की सखी को दरवाजे से अंदर आते हुए देखा और पूछा।

1756_dd60946ca339cc6c8917552ca62c33f0“लेकिन श्यामा, तुम तो अपनी पेंटिंगस को लेकर एक मशहूर नुमाइश में गईं थीं न, क्या हुआ वहाँ, तुम्हारे काम को तो सब बहुत पसंद करते हैं” मैं उत्सुकता से श्यामा से सवाल पर सवाल किए जा रही थी, और वो गुमसुम बिना कुछ सुने और बोले, आँखों में आँसू लिए कहीं खोयी हुई बैठी थी।

images (8)लगभग एक घंटा बीतने के बाद जब श्यामा मन से थोड़ी शांत हुई तो पानी का एक घूंट भरने के बाद एक जलता हुआ सवाल मेरी ओर उछाला,”यह अनचाहा बोझ और दंश कब तक सहना होगा हमें, क्या किसी विशेष जाती या समुदाय में जन्म लेना हमारे अपने हाथ में है? क्या मैंने कभी अपनी विशेष जाती का बैसाखी के रूप में इस्तेमाल किया है? अपने पिता के चरण चिन्हों पर चलते हुए,हमेशा अपने बूते और योग्यता से शिक्षा और सरकारी नौकरी हासिल करी, अपने शौक को आगे बढ़ाते हुए समाज के गणमान्य लोगों में अपना नाम बनाया। बचपन से लेकर आज तक अपने जाती प्रमाण पत्र का इस्तेमाल नहीं किया। फिर क्यूँ यह समाज और इसका बुद्धिजीवी समुदाय मुझे बार-बार नीचा दिखाने पर तुला हुआ है”, एक ही सांस में अपनी पीड़ा को अनेक सवालों के रूप में श्यामा मेरी ओर देकर फफक पड़ी।

मैं निःशब्द उसके दुख की थाह पाने के प्रयास में सोच रही थी, क्या राम और कृष्ण ने केवल केवट और शबरी को उनकी जाती के कारण प्रेम दिया था?

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