“चूड़ियाँ हमेशा बंधन का ही प्रतीक क्यूँ होती हैं। चूड़ियाँ प्रतीक हैं नारीत्व का, और नारी हमेशा कमजोर हो यह ज़रूरी तो नहीं।
प्राचीन काल से तारीखों बताने वाले कलैंडर में देवी की तस्वीर में हमेशा उन्हें पूरे श्रंगार में दिखाया जाता रहा है। माथे की बिंदियां, तरीके से पहनी साड़ी, सिर से पाँव तक सजे जेवर, और होंठों पर सजी मोहक मुस्कान। इसका मतलब है की स्त्री के जेवर उन्हें सजाने के लिए हैं न की उनका बंधन है तो फिर सदियों से चूड़ियों को बंधन का प्रतीक क्यूँ समझा जाता रहा है” बड़े ही ओजपूर्ण स्वरों में नमिता अपना भाषण कालेज की प्रतियोगिता में दे रही थी।
तालियों की गड़गड़ाहट से सारा हाल गूंज गया और हिन्दी विषय की विभागाध्यक्ष। श्रीमति मालती देवी ने आगे बड्कर नमिता को गले लगा लिया। उन्हें नमिता के रूप में अपना समय याद आ गया जब ऐसे ही उन्होंने भी देवी मैत्रीय, रानी लक्ष्मीबाई, सरोजनी नायडू आदि जैसी सन्नारियों को अपना आदर्श मानती थीं, लेकिन सारे आदर्श केवल किताबों तक ही सीमित रह गए और विवाहोपरांत केवल काम करने की तो आज़ादी मिली लेकिन अपने विचारों और आदर्शों को व्यवहार में लाने की नहीं।
“शाबाश नमिता, मुझे तुम्हारे ऊपर गर्व है” मालती देवी ने नमिता के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा। “मुझे पूरी उम्मीद है तुम अपने शब्दों और अपनी करनी में ज़रूर एकता बनाए रखोगी”।
नमिता ने नम्रता पूर्वक झुककर मालती देवी को प्रणाम किया और बोली “ मैडम, आपके और मेरे माता-पिता के आशीर्वाद से ऐसा ही होगा”।
घर पहुँचकर जब उसने अपनी माँ को अपना पुरस्कार दिखाया तो माँ ने प्रसन्नता से उसे गले लगाते हुए कहा “ मैं बहुत खुश हूँ, और अब चलो जल्दी से तैयार हो जाओ, कुछ मेहमान घर आ रहे हैं”।
नमिता समझ गयी और अपने आप को ने केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी तैयार करने लगी।
“हमारा वरुण, एक अच्छी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और जल्द ही इसके विदेश जाने की भी संभावना है” अशोक बाबू बड़े उल्लास से बता रहे थे। “हमें एक पढ़ी-लिखी और घर सम्हालने वाली लड़की चाहिए, नौकरी की तो न हमें ज़रूरत है और न ही वरुण को” समोसा मुंह में दबा कर वो आगे बोले। करुणा देवी, वरुण की माँ चुपचाप पति की बातें सुन रहीं थीं और उनके चेहरे के भाव बता रहे थे की उन्हे शायद कुछ पसंद नहीं आ रहा है। उन्होंने बोलने की कोशिश करी तो अशोक बाबू की तीखी नज़रों ने उन्हे बोलने से पहले ही चुप करवा दिया।
नमिता के पिता ने भी जब अशोक बाबू का समर्थन किया तो नमिता ने हिम्मत करके सीधे वरुण से पूछा “क्या नारी,नौकरी सिर्फ आर्थिक स्वतन्त्रता के लिए ही करती है, क्या आप इस बात से सहमत हैं या इसके अतिरिक्त भी आपको कुछ कहना है।
वरुण से कुछ जवाब न पाकर वो उसका जवाब समझ गयी।
“माँ-पापा, आज से मैं आपकी बेटी नहीं, बेटा हूँ और आप दोनों की देखभाल करना मेरा फर्ज़ ही नहीं बल्कि कर्तव्य भी है” कहती हुई नमिता चाय की ट्रे लेकर अंदर चली गयी। करुणा देवी और मालती देवी सदियों बाद खुद को आज़ाद हुआ महसूस कर रहीं थीं।