“बीबीजी लो मैं आ गयी, कहो क्या काम करना है,” आवाज़ सुनकर जो पीछे मुड़कर देखा तो उसे अपने सामने खड़ा पाया।
नाम तो जानती नहीं थी, हाँ कालोनी के पार्क में कुछ समय से कुछ मजदूर काम कर रहे थे। उत्सुकतावश उनके पास जाकर उनका हाल पूछने को मन हुआ तो कल सुबह की सैर के बाद एक पल को उन लोगों के पास ठहर गयी। पता चला, दो परिवार हैं जिनमें आदमी-औरत और हर आयु के बच्चे मिलकर पंद्रह-सोलह लोग हैं। एक साफ-सुथरी मज़दूरनी को देखकर मन में न जाने क्या हुआ तो उससे कह बैठी, “में यहीं सामने वाले घर में रहती हूँ, कभी इस काम के अलावा और कोई घर का काम करने का इरादा हो तो आ जाना”।
आज वही मज़दूरनी अपने छोटे से बेटे को लेकर मेरे घर के दरवाजे पर खड़ी थी। साथ में एक अपने ही जैसा साफ बर्तन भी लायी थी।
“अरे बेटे के साथ कैसे काम करेगी और ये बर्तन क्यूँ लायी है”। मेरे कौतूहल दिमाग ने फिर से एक सवाल को जन्म दिया “ और हाँ तेरा नाम क्या है” फिर एक सवाल पूछ ही लिया।
“श्यामा नाम है मेरा, और मेरा नंदू बहुत सीधा बालक है बीबीजी, बस एक कोने में बैठा रहेगा। सोचा एक दिन यह भी साफ ज़मीन पर बैठ लेगा। और बर्तन आपके घर से साफ पानी ले जाने के लिए लायी हूँ। रोज तो पार्क के नल से ही खाना बना लेते है। अगर आपको अच्छा नहीं लगा तो कोई बात नहीं” एक सांस में मेरे सारे सवालों के संतोषजनक उत्तर देकर श्यामा वहीं ज़मीन पर बैठ गयी।
“हाँ-हाँ क्यूँ नहीं, अपने नंदू को यहाँ हवा में बैठा दे और जाते समय जितना मन करे पानी ले जाना”। ये कहकर उसे अपने घर के बगीचे में लगी घास को साफ करने के लिए कह दिया और सोचने लगी। कितनी छोटी छोटी बातों में ये लोग सुख ढूंढ लेते हैं। एक माँ अपने रोज़ धूल भरी ज़मीन पर बैठने वाले बेटे को एक दिन साफ ज़मीन देकर ही खुश हो रही है। एक ग्रहणी अपने परिवार के लिए, रोज मिलने वाले पानी की जगह थोड़े साफ पानी से खाना बनाकर ही आज खुश होना चाहती है।
मुझे इन लोगों के इन छोटे छोटे सुखों में बाधा बनने के कोई अधिकार नहीं है।