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नेहा

Published मई 30, 2016 by Voyger

 

नेहा, अपने नामानुरूप थी। बचपन से ही सबसे नेह रखा। परिवार हो या समाज, हर आयु, हर रिश्ते से सिर्फ प्यार किया और प्यार दिया, कभी किसी से बदले में प्यार मांगा नहीं। छोटे भाई, हमेशा, कुछ न कुछ मांगते रहे और बड़ी बहन नेहा, हमेशा प्यार से देती रही। जब तक स्कूल में थे, पढ़ाई खुद भी करी और भाइयों को भी करवाई और बड़े होने के बाद नौकरी लग गयी तो भाई हक़ से कुछ न कुछ मांगते रहे। आदर्शवादी नेहा, हमेशा देने में ही यकीन करती रही। माँ, सब कुछ देखती थीं, शायद मन में कभी सोचा हो लेकिन ज़बान से कभी नहीं कहा और पिता तो हमेशा ही नेहा को बेटा मानते थे। विवाह योग्य होने पर भी छोटे भाई पहले कुछ करने लायक हो जाएँ तभी इस बारे में सोचेंगे, माता-पिता ने प्यार से नेहा को समझा दिया और नेहा ने तो न कहना जाना ही नहीं। कब दोनों भाई आइ ए एस और आइ पी एस बनकर अपनी ग्रहस्थी अलग सजा बैठे, नेहा को तो पता भी नहीं लगा। अपनी अपनी ट्रेनिंग पूरी करके नौकरी और पसंद की साथी को जीवनसाथी बना दोनों भाई माता-पिता का आशीर्वाद लेने आ गए और अपने फोन नंबर दे गए। नेहा तो फिर से अपने नामानुरूप, सबको नेग और नेह ही देती रह गयी।

एक ही बरस में माता-पिता ने एक दूसरे का साथ अंतिम यात्रा तक दिया और अब नेहा को महसूस हुआ की उसने सबको दिया है और उसके हाथ तो रीते के रीते ही रह गए। ऑफिस के बॉस ने नेहा को अपने दफ्तर में ही नहीं जीवन में भी जब जगह दी तो लगा शायद अब नेहा की बारी है किसी से सच्चा स्नेह और नेह पाने की। लेकिन नेहा को तो देना है। उसका जीवन चक्र फिर उसी धुरी पर घुमने लगा जहां, शादी से पहले था। माता-पिता की जगह बूढ़े सास-ससुर, छोटे भाइयों की जगह, छोटे देवर और समय के साथ हुए अपने बच्चे। लेकिन नेहा का नेह, वो तो शायद किसी के पास नहीं है।

शायद देने के साथ लेना भी होता है, नेहा ने यह सबसे कहा होता तो आज उसके हाथ खाली ना होते।

प्रथम प्रयास

Published मई 30, 2016 by Voyger

धूप में बैठे-बैठे शायद माँ की आँख लग गयी। इसीलिए पता नहीं चल सका की सूरज को धूप में बिठाये हुए एक घंटे से ज़्यादा हो गया था। डॉक्टर ने साफ-साफ कहा था, ज़्यादा देर धूप की सीकाई, सूरज की खाल को नुकसान कर सकती है। नरम खाल है इसीलिए इस बात का खास तौर पर ध्यान रखना। लेकिन माँ भी क्या करे, अकेली जान, सारे घर का काम और बाहर का भी देखना होता है, इसलिये दो पल शांति से बैठी तो आँख लग गयी। पिता की मृत्यु के बाद सूरज की माँ, माँ-बाप दोनों का किरदार निभा रही थी।

सूरज को समझ नहीं आ रहा था, धूप की तेज़ी को सहन करे और चुप बैठा रहे या एक पल को आराम से बैठी माँ को आवाज़ देकर उठा दे।

उसने निश्चय कर लिया और फिर एक प्रयास किया। तीन माह की आयु में आये पोलियो की बीमारी के अनेक इलाजों में ये ऑपरेशन भी एक इलाज था और जिसमे डॉक्टर ने बहुत आशा दिखाई थी।

आज सूरज ने दीवार का सहारा लेकर, पहले खड़े होने का और फिर उसी सहारे के साथ एक कदम रखने का प्रयास किया।

“माँ” सूरज की घबराई आवाज़ ने माँ को चौंका दिया, और उसे अपने पास न पाकर माँ एकबारगी घबर ही गयी। “माँ, देखो” सूरज ने फिर आवाज लगाई। आवाज़ की दिशा में माँ ने देखा, सूरज आंगन के दूसरे कोने में खड़ा, उसकी ओर देख रहा था।

माँ की आँखें आंसुओं से भर गईं और भाग कर उसने सूरज को अपने अंक में भर लिया। सूरज ने कांपते हाथों से माँ के आँसू पौंछे और कहा, “ माँ, हम जीत गए’’

“हाँ बेटा, हम जीत गए” माँ ने भी उसी स्वर में जवाब दिया।

वो एक पल …..कुछ और….

Published मई 26, 2016 by Voyger

कामिनी अपने कान और पूरे ध्यान से सुधा को सुनने लगी, जो उसकी जिंदगी के बहुत म्हत्वपूर्ण हिस्से के बारे में बताने वाली थी।

“सूरज, मंजु की मासी का एकलौता लड़का है,  देहरादून में अपनी पढ़ाई पूरी करके यहाँ अपने परिवार की मदद करने के लिए एक नौकरी करने आया है और साथ में अपने आईएस बनने के लिए आगे पढ़ाई भी पूरी करनी है। इसलिए दिन में एक कंपनी में नौकरी करता है और शाम के समय एक पुस्तकालय में बैठकर आईएस की पढ़ाई करने के लिए अलग अलग किताबें पढ़ता है। सुबह दफ्तर जाने से पहले मंजु को उसके कौलेज छोड़ने आता है, क्यूंकी सूरज का दफ्तर मंजु के कौलेज से थोड़ा आगे ही है।” एक सांस में यह सब बोलकर, सुधा, मुंह बाए कामिनी का चेहरा देखने लगी।

अगले पल कामिनी को होश आया तो थोड़ा असमंजस में डूबी कामिनी ने सुधा से पूछा, “लेकिन तुम्हें यह सब कैसे मालूम हुआ, तुम तो हमेशा मेरे साथ ही रहती हो”।

सुधा ने मुसकुराते हुए कहा, “तुम तो जानती हो, मेरा और मंजु का एक विषय एक समान है और इसकी क्लास भी एक साथ लगती है।”

“हाँ तो” कामिनी ने झ्नुझलाते हुए कहा।

“तो ये,” सुधा ने उसी प्यारी सी हंसी के साथ कहा, “पिछले हफ्ते, एक दिन हमारी मिस कल्पना नहीं आयी थीं जो हमारा कॉमन विषय हिन्दी पढ़ाती है, छुट्टी पर थीं, और में और मंजु यह बात नहीं जानते थे इसलिए पूरा वक़्त क्लास में उनका इंतज़ार करते रहे। बस, उनके इंतज़ार में समय व्यतीत करने के लिए हम बातें कर रहे थे, उसी समय मंजु ने यह सब बताया।”

“और क्या बताया मंजु ने” कामिनी ने कुछ उत्सुकता और शर्माते हुए सुधा से पूछा।

“क्या कुछ और भी बताना था मंजु ने मुझे” सुधा ने बड़े भोलेपन से एक पकोड़े को मुंह में रखते हुए पूछा।

“अं, नन, म ,अ …….” कामिनी एकदम गड़बड़ा गयी और कुछ न सूझा, तो चुप चाप मुंह झुका कर बैठ गयी।

सुधा को कामिनी की इस हरकत पर बहुत प्यार आया और उसे गले लगा कर बोली,”डरो नहीं कम्मों रानी, मंजु ने कुछ और नहीं बताया और न ही इससे आगे वो कुछ जानती है।”

कामिनी ने मानो चैन की सांस भरी, और प्यार भरी निश्चिंत नज़रों से सुधा को देखा, और आगे बढ़कर सुधा का माथा प्यार से चूम लिया।

शाम के साये ने गहरा कर रात की चादर कब  ओढ़ ली, दोनों सहेलियाँ यह बात जान ही नहीं पायीं ।

अचानक इस ओर कामिनी का ध्यान गया तो एकदम अचकचा कर उठ गयी और एकदम चलते हुए बोली, “अच्छा सुधा, अब में चलती हूँ, कल सुबह कौलेज जानेके लिए  टाइम से आ जाना।”

 

वो एक पल ….आगे…

Published मई 25, 2016 by Voyger

कामिनी और सुधा, शहर के एक प्र्सिद्ध महिला कौलेज की होनहार छात्राएँ, कला और वाणिज्या विषय के स्नातक की पढ़ाई कर रहीं थीं। कामिनी जहां एक ओर इतिहास और राजनीति की पढ़ाई में संतुष्ट थी वहीं दूसरी ओर सुधा, प्रबंध-लेखांकन के गुर जानने के लिए हमेशा आतुर रहती थी।

कौलेज में विषय जरूर अलग-अलग थे , लेकिन दोनों हमेशा एक साथ ही देखि जाती थीं। पूरे कौलेज में दोनों दो हंसो के जोड़े के नाम से मशहूर थीं। अगर केवल कामिनी की क्लास होती थी तो सुधा लाइब्ररी में अपने नोट्स बना लेती थी और सुधा images21के क्लास के टाइम पर कामिनी कहीं भी बैठकर अपनी पढ़ाई कर लेती थी। गरज ये की दोनों को ही किसी और के साथ की जरूरत नहीं थी। यह बात दोनों की सहपाठिनी भी जानती थीं, इसलिए शुरू मैं कुछ लोगों ने दोनों को अपने ओर खींचने की कोशिश करी लेकिन लगातार असफल होने पर सिर्फ हाय-हैलो तक का ही रिश्ता जोड़ कर रख दिया।

स्कूल की ही भांति, घर से कौलेज तक का आना-जाना दोनों का साथ-साथ ही होता था। इस प्रकार दोनों का हर पल का साथ अब एक आदत बन गया था। इससे एक बड़ा फायदा यह भी था की दोनों को रास्ते में तंग करने वाले मजनू भी कुछ करने की हिम्मत नहीं कर पाते थे।

लेकिन तब भी कोई था जिसने इन दोनों  के बीच में सेंध लगाने की हिम्मत कर ही ली थी। मंजू, कामिनी की क्लास में पढ़ने वाली वो लड़की थी जिसे, कामिनी की ही भांति सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई से ही मतलब था। एक साधारण परिवार की लड़की जिसका इधर-उधर की बातों से कोई मतलब नहीं होता था, समय पर कौलेज आना और अपना काम खतम कर के घर चले जाना, बस यही उसका रोज का रूटीन था। लेकिन पिछले कुछ दिनों से, मंजु के इस कार्यकर्म में थोड़ा बदलाव आया था। कुछ दिनों की अचानक छुट्टी करने के बाद जब मंजु वापस आई तो पता लगा, वो अपने मौसी के घर उनकी बेटी की शादी में गयी थी, यहाँ तक तो सब कुछ समान्य था, तो नया क्या था।  नया यह था, की अब मंजु बस की जगह, किसी के साथ उसके स्कूटर पर बैठकर कौलेज आती थी। और स्कूटर चालक स्वयम काम देव का अवतार था जो, मंजु को कौलेज के गेट पर उतारकर, बिना कुछ आगे-पीछे देखे सर्र से स्कूटर दौड़ा कर ले जाता था। धीरे धीरे सारे कॉलेज में इस कामदेव के आने की खबर जंगल में आग की तरह फैल गयी और और अब हर कोई मंजु को अपनी दोस्त मानने और बनाने में जुट गयी लेकिन मंजु इन सब से बेखबर अपनी पढ़ाई में मस्त रही।

कामिनी और सुधा भी इस आग से बेखबर नहीं थीं, लेकिन उन दोनों  ने भी मंजु की तरह इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। लेकिन कामदेव ने जरूर अपना शिकार ढूंढ ही लिया था। एक दिन मंजु को कॉलेज के गेट पर उतारते समय, सूरज की निगाहें,हाँ सूरज ही तो नाम था, कामदेव के उस अवतार का,  बस से उतर कर अंदर जाती हुई कामिनी से टकरा ही गईं। वो ही एक पल दोनों के लिए बहुत था, एक दूसरे को जानने के लिए। उसके बाद सूरज और कामिनी की नजरें एक दूसरे को ढूंढती थीं, लेकिन शायद फिर वो इत्तिफाक़ हुआ नहीं और जान बूझकर मिलने की कोशिश दोनों ने करी नहीं ।

लेकिन कहते हैं न, मन से अगर कुछ चाहो तो, वो मिल ही जाता है।  एक शाम, download (4)कॉलेज से लौटते समय, सूरज मंजु को लेने आ गया और उसी समय, सुधा-कामिनी भी अपनी अपनी क्लास समाप्त करके घर लौट रहीं थीं। लगभग बस में चढ़ते समय, कामिनी ने पीछे मुड़कर सूरज को देखा और हल्के से मुस्कुरा दी और उसकी मुस्कराहट का जवाब सूरज ने उसी बड़ी प्यारी से मुस्कुराहट से दिया।

ये सब कुछ कुछ पलों में ही हो गया। लेकिन कामिनी के लिए ये कुछ पल ही सदियों के समान थे। और यही वो पल थे जो सुधा ने कामिनी से चुरा लिए थे ।

अब तो कामिनी के गाल लाल-बहूटी बन गए। अपने दुपट्टे में चेहरा छुपा कर सोचने लगी, सुधा क्या सोचती होगी मेरे बारे में। “कुछ बुरा नहीं सोचती में तेरे बारे में ” सुधा ने हँसते हुए तपाक से कहा। तो क्या सुधा ने मेरे मन की बात पढ़ ली., कामिनी ने हैरान नज़रों से सुधा को देखते हुए सोचा। “इतनी हैरान न हो मेरी बिट्टों” सुधा, कामिनी के गले लगती हुई बोली,”क्या हम दोनों का साथ, सिर्फ आज का है जो हमें कुछ भी कहने ये सुनने के लिए, शब्दों की जरूरत हो”। कामिनी ने कुछ नहीं कहा, बस शरमा कर गरदन झूका दी।

“मैं उस दिन से सब जानती हूँ, जिस दिन से तुम दोनों ने पहली बार एक दूसरे को देखा था,” सुधा आगे बोली, “लेकिन में इंतज़ार कर रही थी उस पल का जब खुद मेरी बिट्टों खुद आकर मुझसे अपने मन की बात कहे, तो देखो आज वो पल आ गया” सुधा ने हँसते हुए, कामिनी से कहा ।

“अच्छा जी, तो अब मन की बात के लिए शब्दों की जरूरत हो ही गयी,” कामिनी ने कुछ तुनकते हुए और कुछ मुह फुलाते  हुए कहा। ” नहीं नहीं कम्मों रानी,

“नहीं नहीं कम्मों रानी,” सुधा ने अपने ब्रह्मास्त्र को चलाया, “ऐसा कुछ नहीं है, लेकिन कभी कभी मन की बात निकलवाने के लिए, शब्दों की जरूरत होती है,”।

अब कामिनी ने हार मान ली और सुधा से पूछा, “अच्छा ये बता, और क्या जानती है “।

सुधा ने थोड़ा और मज़ा लेते हुए कहा “पूछती जाओ बालिके, आज महाराज से जो कुछ भी पूछोगी, सब का जवाब पाओगी, लेकिन उसके लिए थोड़ा सा कष्ट और थोड़ी सी दक्षिणा लेगेगी।” सुधा ने बड़ी गंभीरता से कहा तो कामिनी खिलखिला कर हँस पड़ी और आगे बढ़कर सुधा को गले लगा लिया।

“अब दोनों सहेलियाँ बातों से ही पेट भरेंगी या कुछ चाय नाश्ता भी करेंगी” हँसते हुए सुधा की माँ, सुमन ने चाय की ट्रे, दोनों के सामने रखते हुए कहा।

“अब जब तक, आपके हाथ की स्वाद चाय और प्याज के पकोड़े ने हों, तब चाचिजी, बातों में भी मजा नहीं आता है” कामिनी ने झट से दो-चार पकोड़े अपने और सुधा के मुंह में डालते हुए कहा ।

सुमन रानी, प्यार से दोनों की सिर पर हाथ फेरती हुई वहाँ से चली गईं। उनके जाते ही जैसे बातों का छूटा हुआ सिरा फिर से उठाते हुए कामिनी ने सुधा की ओर सवालिया निगाहों से देखा । लेकिन सुधा तो जैसे इस समय अपना पूरा ध्यान नाश्ते की ट्रे में ही लगाए हुए थी। उसने कामिनी की ओर देखा तो पाया की वो अभी तक हाथ में चाय का प्याला और पकोड़े पकड़ कर बैठी है और उसके बोलने के इंतज़ार कर रही है।

सुधा, कामिनी को थोड़ा और चिड़ाना चाहती थी, लेकिन कामिनी की मासूम सूरत पर उसको तरस आ गया और वो हाथ से चाय का कप नीचे रखकर और मसले वाले हाथ झाड़कर बोली,” हाँ तो पूछो बच्चा, क्या पूछना चाहती हो”।

अब कामिनी का सब्र का बांध जैसे टूट गया और वो जैसे ही सुधा की ओर झपटी, सुधा ने एकदम हाथ उठा कर कहा, ” मैं जानती हूँ तुम और सूरज एक दूसरे को पसंद करते हो।”

“कोई  नई बात बताओ , ये तो शायद अब सब जानते हैं, ” कामिनी ने मुंह फुलाते हुए कहा।

“हम्म तो तुम सूरज के बारे में जानना चाहती हो,” सुधा ने कामिनी की ओर कनखियों से देखते हुए रुक रुक कर कहा।

“हाँ हाँ हाँ हाँ ……” कामिनी के अंग अंग से खुशी और उत्सुकता बरस रही थी। बता न, क्या जानती है तू, उनके बारे में, कामिनी ने कुछ शर्माते हुए और कुछ झिकझकते हुए सुधा से पूछा।

“हाँ तो बच्चा, कान और ध्यान लगा कर सुनो ….. ……..

वो एक पल….

Published मई 7, 2016 by Voyger

“सुधा….अरी कहाँ खो गयी है जो मेरी आवाज़ ही नहीं सुनाई दे रही है तुझे” कामिनी ने हँसते हुए कुछ ज़ोर से कहा; सुधा जो शायद सचमुच ही कहीं खो सी गयी थी, अचकचा कर बोली, “नहीं तो, खोऊँगी कहाँ, यहीं तो हूँ मैं, सुन भी रही हूँ” सुधा हँसते हुए अपनी कौपी किताब समेटते हुए बोली। “हाँ हाँ, देखा तेरा सुनना भी और ना सुनना भी” कामिनी ने कुछ हँसते और कुछ झुँझलाते हुए कहा। सुधा होठों पर मुस्कान को सजा कर अपनी किताबें और सब समान को समेट कर अपनी बचपन की सखी के सामने आ कर बैठ गयी और बोली, “हाँ अब बता, क्या बात है और क्यूँ इतना तूफान मचा रखा है घर में”।

कामिनी और सुधा ने भगवान के घर से तो अलग अलग सफर शुरू किया था, लेकिन धरती पर आकार जो मिलना हुआ तो इस दुनिया में आकर आँख खोलने से लेकर आज तक का हर काम साथ साथ ही किया। सुधा-कामिनी के माता-पिता school girl 1आपस में पड़ोसी थे और दरवाजे दोनों के घर के अलग जरूर थे लेकिन उनकी छतें जरूर आपस में मिली हुई थी। इन दोनों छतों ने सुधा-कामिनी का बचपन से लेकर युवावस्था तक का सफर बहुत अच्छी तरह से देखा है। इसी दोस्ती के कारण सुधा-कामिनी की माताएँ की भी दोस्ती अच्छी ख़ासी हो गयी थी। हाँ, दोनों के पिताओं का स्वभाव कुछ अलग होने के कारण कोई खास दोस्तना नहीं था, लेकिन उनमें आपस में बात-चित न हो, ऐसा भी नहीं था। कुल मिलकर, दोनों के परिवार एक दूसरे के सुख-दुख के पहले और अच्छे साथी थे। कुछ भगवान की करनी ऐसी थी की दोनों ही लड़कियों के कोई भाई या बहन भी नहीं हुआ, तो कुछ ये भी वजह थी जो दोनों ही एक दूसरी के मन की साथी बन गईं। स्कूल में भी कोई इन दोनों की दोस्ती के बीच में नहीं आ सका। और अब जब इन दोनों नें किशोरावस्था को पार कर के यौवन में प्रवेश किया तब भी इनकी दोस्ती में कोई अंतर नहीं  आया बल्कि और गहरी हो गयी क्यूंकी दोनों एक दूसरे की गहरी राजदार जो बन गईं थीं।

आज भी कामिनी अपने मन की एक बात सुधा को बताने के लिए आई थी तो सुधा को अपनी पढ़ाई में मगन पाया, बस इतनी सी बात से झुँझला सी गयी थी कामिनी।

सुधा को अपनी तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए जब पाया तो कामिनी कुछ शरमा सी गयी और ये देख कर सुधा और ज़ोर से हंस पड़ी। “सुधि, तूने कल शाम को कुछ देखा था क्या “, कामिनी ने कुछ झिझकते और कुछ शर्माते हुए गरदन झुका कर सुधा से पूछा। images (14)

“बस इतनी सी बात थी, और तूफान इतना सारा मचाया हुआ था” सुधा यह कहकर हँसते हुए अपनी जगह पर खड़ी हो गयी।

कामिनी चौंक कर सुधा की ओर देखने लेगी, “हाँ , मैंने सब कुछ देखा था ” सुधा ने अपना दुपट्टा समहलते  हुए कहा। “क्या देखा तूने” कामिनी ने सुधा की ओर सवालिया नज़रों से देखा और पूछा,”सब कुछ से तेरा क्या मतलब है “?

“अरे सब कुछ से मतलब, सभी कुछ जो भी हुआ वहाँ पर ” सुधा भी गरदन झुका कर अपना समान समेटते हुए बोली।

तो क्या सुधा सब कुछ जानती है……..