कामिनी और सुधा, शहर के एक प्र्सिद्ध महिला कौलेज की होनहार छात्राएँ, कला और वाणिज्या विषय के स्नातक की पढ़ाई कर रहीं थीं। कामिनी जहां एक ओर इतिहास और राजनीति की पढ़ाई में संतुष्ट थी वहीं दूसरी ओर सुधा, प्रबंध-लेखांकन के गुर जानने के लिए हमेशा आतुर रहती थी।
कौलेज में विषय जरूर अलग-अलग थे , लेकिन दोनों हमेशा एक साथ ही देखि जाती थीं। पूरे कौलेज में दोनों दो हंसो के जोड़े के नाम से मशहूर थीं। अगर केवल कामिनी की क्लास होती थी तो सुधा लाइब्ररी में अपने नोट्स बना लेती थी और सुधा के क्लास के टाइम पर कामिनी कहीं भी बैठकर अपनी पढ़ाई कर लेती थी। गरज ये की दोनों को ही किसी और के साथ की जरूरत नहीं थी। यह बात दोनों की सहपाठिनी भी जानती थीं, इसलिए शुरू मैं कुछ लोगों ने दोनों को अपने ओर खींचने की कोशिश करी लेकिन लगातार असफल होने पर सिर्फ हाय-हैलो तक का ही रिश्ता जोड़ कर रख दिया।
स्कूल की ही भांति, घर से कौलेज तक का आना-जाना दोनों का साथ-साथ ही होता था। इस प्रकार दोनों का हर पल का साथ अब एक आदत बन गया था। इससे एक बड़ा फायदा यह भी था की दोनों को रास्ते में तंग करने वाले मजनू भी कुछ करने की हिम्मत नहीं कर पाते थे।
लेकिन तब भी कोई था जिसने इन दोनों के बीच में सेंध लगाने की हिम्मत कर ही ली थी। मंजू, कामिनी की क्लास में पढ़ने वाली वो लड़की थी जिसे, कामिनी की ही भांति सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई से ही मतलब था। एक साधारण परिवार की लड़की जिसका इधर-उधर की बातों से कोई मतलब नहीं होता था, समय पर कौलेज आना और अपना काम खतम कर के घर चले जाना, बस यही उसका रोज का रूटीन था। लेकिन पिछले कुछ दिनों से, मंजु के इस कार्यकर्म में थोड़ा बदलाव आया था। कुछ दिनों की अचानक छुट्टी करने के बाद जब मंजु वापस आई तो पता लगा, वो अपने मौसी के घर उनकी बेटी की शादी में गयी थी, यहाँ तक तो सब कुछ समान्य था, तो नया क्या था। नया यह था, की अब मंजु बस की जगह, किसी के साथ उसके स्कूटर पर बैठकर कौलेज आती थी। और स्कूटर चालक स्वयम काम देव का अवतार था जो, मंजु को कौलेज के गेट पर उतारकर, बिना कुछ आगे-पीछे देखे सर्र से स्कूटर दौड़ा कर ले जाता था। धीरे धीरे सारे कॉलेज में इस कामदेव के आने की खबर जंगल में आग की तरह फैल गयी और और अब हर कोई मंजु को अपनी दोस्त मानने और बनाने में जुट गयी लेकिन मंजु इन सब से बेखबर अपनी पढ़ाई में मस्त रही।
कामिनी और सुधा भी इस आग से बेखबर नहीं थीं, लेकिन उन दोनों ने भी मंजु की तरह इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। लेकिन कामदेव ने जरूर अपना शिकार ढूंढ ही लिया था। एक दिन मंजु को कॉलेज के गेट पर उतारते समय, सूरज की निगाहें,हाँ सूरज ही तो नाम था, कामदेव के उस अवतार का, बस से उतर कर अंदर जाती हुई कामिनी से टकरा ही गईं। वो ही एक पल दोनों के लिए बहुत था, एक दूसरे को जानने के लिए। उसके बाद सूरज और कामिनी की नजरें एक दूसरे को ढूंढती थीं, लेकिन शायद फिर वो इत्तिफाक़ हुआ नहीं और जान बूझकर मिलने की कोशिश दोनों ने करी नहीं ।
लेकिन कहते हैं न, मन से अगर कुछ चाहो तो, वो मिल ही जाता है। एक शाम, कॉलेज से लौटते समय, सूरज मंजु को लेने आ गया और उसी समय, सुधा-कामिनी भी अपनी अपनी क्लास समाप्त करके घर लौट रहीं थीं। लगभग बस में चढ़ते समय, कामिनी ने पीछे मुड़कर सूरज को देखा और हल्के से मुस्कुरा दी और उसकी मुस्कराहट का जवाब सूरज ने उसी बड़ी प्यारी से मुस्कुराहट से दिया।
ये सब कुछ कुछ पलों में ही हो गया। लेकिन कामिनी के लिए ये कुछ पल ही सदियों के समान थे। और यही वो पल थे जो सुधा ने कामिनी से चुरा लिए थे ।
अब तो कामिनी के गाल लाल-बहूटी बन गए। अपने दुपट्टे में चेहरा छुपा कर सोचने लगी, सुधा क्या सोचती होगी मेरे बारे में। “कुछ बुरा नहीं सोचती में तेरे बारे में ” सुधा ने हँसते हुए तपाक से कहा। तो क्या सुधा ने मेरे मन की बात पढ़ ली., कामिनी ने हैरान नज़रों से सुधा को देखते हुए सोचा। “इतनी हैरान न हो मेरी बिट्टों” सुधा, कामिनी के गले लगती हुई बोली,”क्या हम दोनों का साथ, सिर्फ आज का है जो हमें कुछ भी कहने ये सुनने के लिए, शब्दों की जरूरत हो”। कामिनी ने कुछ नहीं कहा, बस शरमा कर गरदन झूका दी।
“मैं उस दिन से सब जानती हूँ, जिस दिन से तुम दोनों ने पहली बार एक दूसरे को देखा था,” सुधा आगे बोली, “लेकिन में इंतज़ार कर रही थी उस पल का जब खुद मेरी बिट्टों खुद आकर मुझसे अपने मन की बात कहे, तो देखो आज वो पल आ गया” सुधा ने हँसते हुए, कामिनी से कहा ।
“अच्छा जी, तो अब मन की बात के लिए शब्दों की जरूरत हो ही गयी,” कामिनी ने कुछ तुनकते हुए और कुछ मुह फुलाते हुए कहा। ” नहीं नहीं कम्मों रानी,
“नहीं नहीं कम्मों रानी,” सुधा ने अपने ब्रह्मास्त्र को चलाया, “ऐसा कुछ नहीं है, लेकिन कभी कभी मन की बात निकलवाने के लिए, शब्दों की जरूरत होती है,”।
अब कामिनी ने हार मान ली और सुधा से पूछा, “अच्छा ये बता, और क्या जानती है “।
सुधा ने थोड़ा और मज़ा लेते हुए कहा “पूछती जाओ बालिके, आज महाराज से जो कुछ भी पूछोगी, सब का जवाब पाओगी, लेकिन उसके लिए थोड़ा सा कष्ट और थोड़ी सी दक्षिणा लेगेगी।” सुधा ने बड़ी गंभीरता से कहा तो कामिनी खिलखिला कर हँस पड़ी और आगे बढ़कर सुधा को गले लगा लिया।
“अब दोनों सहेलियाँ बातों से ही पेट भरेंगी या कुछ चाय नाश्ता भी करेंगी” हँसते हुए सुधा की माँ, सुमन ने चाय की ट्रे, दोनों के सामने रखते हुए कहा।
“अब जब तक, आपके हाथ की स्वाद चाय और प्याज के पकोड़े ने हों, तब चाचिजी, बातों में भी मजा नहीं आता है” कामिनी ने झट से दो-चार पकोड़े अपने और सुधा के मुंह में डालते हुए कहा ।
सुमन रानी, प्यार से दोनों की सिर पर हाथ फेरती हुई वहाँ से चली गईं। उनके जाते ही जैसे बातों का छूटा हुआ सिरा फिर से उठाते हुए कामिनी ने सुधा की ओर सवालिया निगाहों से देखा । लेकिन सुधा तो जैसे इस समय अपना पूरा ध्यान नाश्ते की ट्रे में ही लगाए हुए थी। उसने कामिनी की ओर देखा तो पाया की वो अभी तक हाथ में चाय का प्याला और पकोड़े पकड़ कर बैठी है और उसके बोलने के इंतज़ार कर रही है।
सुधा, कामिनी को थोड़ा और चिड़ाना चाहती थी, लेकिन कामिनी की मासूम सूरत पर उसको तरस आ गया और वो हाथ से चाय का कप नीचे रखकर और मसले वाले हाथ झाड़कर बोली,” हाँ तो पूछो बच्चा, क्या पूछना चाहती हो”।
अब कामिनी का सब्र का बांध जैसे टूट गया और वो जैसे ही सुधा की ओर झपटी, सुधा ने एकदम हाथ उठा कर कहा, ” मैं जानती हूँ तुम और सूरज एक दूसरे को पसंद करते हो।”
“कोई नई बात बताओ , ये तो शायद अब सब जानते हैं, ” कामिनी ने मुंह फुलाते हुए कहा।
“हम्म तो तुम सूरज के बारे में जानना चाहती हो,” सुधा ने कामिनी की ओर कनखियों से देखते हुए रुक रुक कर कहा।
“हाँ हाँ हाँ हाँ ……” कामिनी के अंग अंग से खुशी और उत्सुकता बरस रही थी। बता न, क्या जानती है तू, उनके बारे में, कामिनी ने कुछ शर्माते हुए और कुछ झिकझकते हुए सुधा से पूछा।
“हाँ तो बच्चा, कान और ध्यान लगा कर सुनो ….. ……..
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