पुरालेख

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मेरी खुशी

Published दिसम्बर 14, 2017 by Voyger

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“हाँ हाँ, कितनी बार कहा है मैं वोही करूंगा जो मुझे अच्छा लगेगा और जिससे मुझे खुशी मिलेगी,” अभिषेक कहते हुए हाँफने लगा, “आखिर मेरी भी कोई मर्ज़ी है की नहीं, मुझे सिखाने और पढ़ाने की कोशिश मत करो” कहते हुए वो कमरे से निकल गया।

“अरे आशा, अभिषेक इतने गुस्से में क्यूँ बाहर गया है” उसकी हमउम्र सुनीता ने दरवाजा खुला देखकर घर में आते हुए उससे पूछा।download (5)

अभिलाषा आँसू भरी आँखों से बोली ‘भाभी, सिर्फ इतना  ,की अपने दिमाग के स्ट्रेस को कम करने के लिए अपनी जिंदगी को सरल बनाने का करो, रोज पेट खराब, सिर में दर्द और शरीर में कहीं न कहीं दर्द को लेकर अभिषेक हमेशा परेशान रहते हैं । सभी डॉक्टर यही कहते हैं की इन्हें कोई शारीरिक बीमारी नहीं है।’

“तो तुम उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो…..,” सुनीता ने कुछ सोचते हुए कहा,।

“दीदी ,यही तो हुआ है अभिषेक के साथ सारी जिंदगी। कभी न किसी की बात सुनी और न मानी। हर रिश्तेदार ने अपनी इज्जत बचाते हुए, इनसे किनारा कर लिया। अब मैं भी अगर यही करूँ, तो फिर बाकी लोगों में और मुझमे क्या अंतर होगा।“  अभिलाषा ठंडी सांस भरते हुए बोली, “अभिषेक की अभी की बात सुनकर कोई भी यह सोच सकता है की इस युवक ने सारी जिंदगी एक बोझ के तले रह कर बिताई है।“

सुनीता ने कुछ सोचते हुए कहा “हाँ हमेशा यही कहते हैं की उनको सारी जिंदगी सबने अपनी उँगलियों पर नचाया है”।

images 24“लेकिन भाभी,”अभिलाषा ने परेशान होते हुए कहा,”जबकि सच्चाई तो यह है की इनहोनें तब तक किसी की बात नहीं सुनी जब तक खुद न समझ आ जाए, और इसके लिए यह हमेशा सबसे बहस करते रहते हैं।“

“इसका मतलब अभिषेक किसी की बात को ऐसे ही मानने में अपना अपमान समझता है” सुनीता ने हैरान होते हुए कहा…

अभिलाषा तो स्वयं इस सवाल का जवाब ढूंढ रही है…..

 

 

शतरंज का मोहरा

Published दिसम्बर 12, 2017 by Voyger

157197058“कितना समझाया इसे की अपनी जिंदगी में कुछ बनो, अपने भाइयों को देखो, सब अच्छे से सेटल हो गए हैं, तुम क्यूँ नहीं कुछ करते” सरिता देवी झुँझलाते हुए अपने चालीस वर्ष के मँझले बेटे रतन से कह रहीं थीं।

“इसके दोनों भाइयों को देखो,”उन्होनें मुझसे कहा ” बड़ा हैदराबाद में कितनी अच्छी सेलरी ले रहा है और इससे छोटा वो तो कितना बड़ा घर है , एक बस यही निखट्टू है,जो कुछ करके राजी नहीं है”।

“तो फिर वहीं क्यूँ नहीं चली जाती हो माँ, तुम्हारा इलाज भी अच्छा हो जाएगा ” रतन ने मुसकुराते हुए माँ से कहा।

“अरे कैसे चली जाऊँ, बड़े की तो बीबी बीमार रहती है, बेचारा वो उसको देखेगा या मेरे इलाज के लिए भाग दौड़ करेगा। और छोटा, वो तो बेचारा आर्मी में है, उसके पास न तो टाइम है और न कोई सुविधा है। ” सरिता देवी ने बहुत बेचारगी से कहा।

175598525सरिता आंटी का हाल पूछने आई थी और अब मेरे जाने का समय हो गया था, इसलिए मैं उनसे इजाजत लेकर घर आ गई।

माँ से उनके बारे में पूछने पर वो बोलीं “सरिता देवी पागलपन तक की सीमा तक अहंकारी और क्रोधी स्वभाव की महिला हैं और वो वो अच्छी तरह से जानतीं हैं की उनके वो बेटे जो अच्छे वेतन पर सुख सुविधा में रह रहे हैं, उनके स्वभाव को अच्छी पहचानने के कारण उनके किसी भी गलत व्यवहार से प्रभावित नहीं होंगे। यह तो केवल रतन ही है जो उनके स्वभाव को जानते हुए भी उनकी देखभाल कर रहा है”।

‘तब तो दोनों भाई, रतन का साथ देते होंगे’ मैंने अचरज में माँ से पूछा।

‘नहीं,सरिता देवी ने रतन और दोनों भाइयों के बीच की खाई को इतना बड़ा कर दिया है की कोई किसी को पूछता भी नहीं है।“ माँ ने बुझे मन से कहा

तो इसका मतलब….रतन, सरिता देवी के…..

हाथ का मोहरा है….माँ ने मेरे वाक्य को पूरा किया

आज का श्रवण कुमार या शतरंज का मोहरा …क्या कहूँ रतन को….मैं इसी दुविधा में थी….