“हाँ हाँ, कितनी बार कहा है मैं वोही करूंगा जो मुझे अच्छा लगेगा और जिससे मुझे खुशी मिलेगी,” अभिषेक कहते हुए हाँफने लगा, “आखिर मेरी भी कोई मर्ज़ी है की नहीं, मुझे सिखाने और पढ़ाने की कोशिश मत करो” कहते हुए वो कमरे से निकल गया।
“अरे आशा, अभिषेक इतने गुस्से में क्यूँ बाहर गया है” उसकी हमउम्र सुनीता ने दरवाजा खुला देखकर घर में आते हुए उससे पूछा।
अभिलाषा आँसू भरी आँखों से बोली ‘भाभी, सिर्फ इतना ,की अपने दिमाग के स्ट्रेस को कम करने के लिए अपनी जिंदगी को सरल बनाने का करो, रोज पेट खराब, सिर में दर्द और शरीर में कहीं न कहीं दर्द को लेकर अभिषेक हमेशा परेशान रहते हैं । सभी डॉक्टर यही कहते हैं की इन्हें कोई शारीरिक बीमारी नहीं है।’
“तो तुम उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो…..,” सुनीता ने कुछ सोचते हुए कहा,।
“दीदी ,यही तो हुआ है अभिषेक के साथ सारी जिंदगी। कभी न किसी की बात सुनी और न मानी। हर रिश्तेदार ने अपनी इज्जत बचाते हुए, इनसे किनारा कर लिया। अब मैं भी अगर यही करूँ, तो फिर बाकी लोगों में और मुझमे क्या अंतर होगा।“ अभिलाषा ठंडी सांस भरते हुए बोली, “अभिषेक की अभी की बात सुनकर कोई भी यह सोच सकता है की इस युवक ने सारी जिंदगी एक बोझ के तले रह कर बिताई है।“
सुनीता ने कुछ सोचते हुए कहा “हाँ हमेशा यही कहते हैं की उनको सारी जिंदगी सबने अपनी उँगलियों पर नचाया है”।
“लेकिन भाभी,”अभिलाषा ने परेशान होते हुए कहा,”जबकि सच्चाई तो यह है की इनहोनें तब तक किसी की बात नहीं सुनी जब तक खुद न समझ आ जाए, और इसके लिए यह हमेशा सबसे बहस करते रहते हैं।“
“इसका मतलब अभिषेक किसी की बात को ऐसे ही मानने में अपना अपमान समझता है” सुनीता ने हैरान होते हुए कहा…
अभिलाषा तो स्वयं इस सवाल का जवाब ढूंढ रही है…..