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हमारी माँ

Published अगस्त 27, 2016 by Voyger

भैया, हमारी माँ का क्या हाल है, उनका खयाल तो ठीक से रखा जा रहा है न, उन्हे कोई तकलीफ तो नहीं है, वो लोग उनकी सेवा में कोई कमी तो नहीं कर रहे” निशांत ने अपने बड़े भाई सुशांत से फोन पर पूछा। सुशांत एक दिन पहले ही बंगलौर से दिल्ली अपनी माँ को देख कर आए थे।

“हाँ-हाँ, सब ठीक है, बहुत अच्छे से उनका खयाल रखा जा रहा है। वो दोनों उनकी सेवा में कोई कमी नहीं रखते हैं। ये तो तुम भी जानते हो, अगर वो लोग माँ का खयाल नहीं रख रहे होते तो अब तक हम लोग कितनी परेशानी में आ जाते। खैर, तुम परेशान न हो, माँ की तरफ से बिलकुल निश्चिंत रहो” सुशांत ने हँसते हुए अपने सबसे छोटे भाई निशांत से कहा और फोन नीचे रख कर सामने चलते टीवी के कार्यक्रम में खो गए।

सुशांत, कल ही दिल्ली जा कर अपनी बीमार माँ को देख कर आए थे जिसकी देखभाल उनके मँझले भाई और उनकी पत्नी पिछले 15 साल से कर रहे थे। निर्मला देवी के पति के स्वर्गवास होने से पहले वो उनके साथ थे और उनकी मृत्यु के पश्चात प्रशांत, उनका मंझला भाई माँ की देखभाल कर रहा था।

सुशांत और निशांत अपनी अपनी नौकरी में व्यस्त थे और इसी कारण वो अपनी माँ की देखभाल नहीं कर सकते थे। प्रशांत, जिसके लिए, बचपन से ही दोनों भाइयों के मन में, नाराजगी थी, उनके हिसाब से निकम्मा और नकारा था। इसीलिए जिद्दी, कर्कशा और मानसिक रोगी माँ की देखभाल का जिम्मा प्रशांत और उनकी पत्नी का था।

प्रशांत के चाचा ने जब उनका हाल जानने की लिए फोन किया तो उन्हे सुशांत के आने का पता लगा। “क्या सुशांत-निशांत का फर्ज़ सिर्फ दो साल में एक घंटे के लिए आना ही रह गया है। उनके पास अपनी बीमार माँ को देखने का न समय है और न पैसा” क्रोधित चाचा जी बोले।

निर्मला देवी ने अपने देवर को शांत करते हुए कहा “ भाई साहब आप तो जानते हैं न, वो दोनों अपने काम में कितना व्यस्त रहते हैं। अभी निशांत अपने परिवार के साथ विदेश घूम कर आया है। बेचारा अपने परिवार के साथ समय नहीं बिता पाता है, इसीलिए एक माह ही छुट्टी लेकर घूमने गया था। और सुशांत को तो तुम जानते ही हो। उसे तो उसकी सामाजिक ज़िम्मेदारी ही पीछा नहीं छोड़ती। बेचारे के घर जो उसका कुत्ता है, वो उसके साथ ही मुश्किल से समय निकाल पाता है। कह रहा था, बहुत परेशान है” ।

“और प्रशांत के क्या हाल हैं” चाचा जी ने अपना क्रोध दबाते हुए अपनी भाभी से पूछा।

“ वो नालायक, कहाँ जाएगा, अपनी बीबी के साथ मटरगश्ती करने गया होगा” तल्खी भरी आवाज़ में निर्मला देवी ने कह कर फोन नीचे रख दिया।

अचानक काम से वापस आए प्रशांत ने माँ की आवाज़ सुन ली थी, उनकी पत्नी ने धीरे से उनके हाथ पर अपना हाथ रख कर उन्हें हौसला दिया और वो दोनों फिर से अपनी दिनचर्या में लग गए, जैसे कुछ हुआ ही न हो।