“तुम अगर मेरा साथ देना चाहती हो तो तुम्हें यह काम करना ही होगा ” सुशांत ने गले की आखरी सीमा तक आवाज को ऊंचा करते हुए सुमन से कहा। सुमन पिछले सात सालों से साथ देने का अर्थ समझने की कोशिश कर रही थी।
सात वर्ष पूर्व, सुशांत ने भावुक होते हुए सुमन का हाथ पकड़ कर कहा था, “सुमन, मैं दुनिया में बहुत अकेला हूँ, घर में, समाज में किसी ने मेरा साथ नहीं दिया, इसीलिए मैं आज तक कुछ कर नहीं पाया हूँ, क्या तुम मेरा साथ दोगी”। सुमन जो उस समय एक सरकारी दफ्तर में ऊंचे पद पर और अच्छे वेतन पर काम कर रही थी, एक मित्र ने सुशांत का परिचय करवाया और सुमन उसके व्यवहार से प्रभवित हो कर उसे मन ही मन अपना बना बैठी थी। सुशांत के इस वाक्य ने तो सुमन के मुंह से खामोश हाँ निकाल ही दी। घर वालों की मर्जी के खिलाफ, पीएचडी पढ़ी सुमन ने एक साधारण और बेरोजगार सुशांत से विवाह कर दिया। क्यूंकी सुमन, सुशांत का साथ देना चाहती थी। विवाह होते ही ससुराल के रात-दिन के जले-कटे ताने और अत्याचार बराबर व्यवहार सिर्फ इसलिए सहा, क्यूंकी उसने सुशांत का साथ देने का वादा किया था।
“मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत अपने बिजनेस के लिए है, तुम नौकरी छोड़ दो ”…. सुमन के लाख समझने पर भी सुशांत ने फिर उसका साथ मांगा जो सुमन ने दिया।
बिजनेस के नाम पर सारा पैसा गंवाने के बाद सुशांत घर बैठ गया। हर समय चिड़चिड़ा व्यवहार और गुस्सा, सुशांत की दिनचर्या थी।
सुमन ने फिर से अपना साहस जुटा कर नौकरी करने की कोशिश करी तो सुशांत का क्रोध सीमा लांघ गया। सुमन ने अपना रास्ता बदला और घर में ही बैठकर अपने लिखने के शौक को व्यवसाय बनाने की कोशिश करी। जल्द ही सुमन सफल लेखक के रूप में प्रसिद्ध हो गयी। अच्छे पैसे भी मिलने लगे। सुशांत फिर सामने खड़ा था। सुमन के समय को अपने नाम करने के लिए। सुमन ने अपने काम का हवाला दिया तो फिर से सुशांत ने साथ देने का वादा याद दिलाया।
सुमन अब साथ देने की परिभाषा ढूँढने की कोशिश कर रही थी।
मुझे लगा…सुमन को घर छोड़कर जाने की सलाह देना बहुत आसान है। लेकिन घर में रहकर अपने अस्मिता को बनाए रखकर सुशांत का साथ देना उसके लिए संभव है , अब यही सवाल मेरे मन में है…..