वो क्या था….(उसके बाद)

Published मार्च 27, 2016 by Voyger

“क्या आप मुझसे दोस्ती करना पसंद करेंगी” 🙂

नीलीमा को गुस्सा आ गया, ये तो हद हो गयी, ना जान न पहचान, और चलें हैं दोस्ती करने, हुम्म, उसने फिर से वो चैट विंडो बंद कर दी।

वो अभी अपना काम शुरू करने ही वाली थी की फिर से वही खिड़की खुली एक बहुत लंबे मेसेज के साथ,

“मेरा नाम सूरज है, में एक  मेकनिकल इंजीनीयर हूँ और यहाँ मुंबई में  एक प्रतिष्ठित फ़र्म में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर काम करता हूँ।में आपसे दोस्ती करके आपके बारे में जानना चाहता हूँ। यकीन मानिए में किसी तरह के गलत इरादे से आपसे बात नहीं कर रहा हूँ, ये तो बस आपका नाम मुझे अच्छा लगा, बस इसीलिए आपसे बात कर रहा हूँ। और फिर भी अगर आपको अच्छा न लगे तो फिर आपको परेशान नहीं करूँगा । ” 🙂

पता नहीं क्या जादू था उन शब्दों में की नीलिमा इस बार वो विंडो बंद नहीं कर सकी।

download.png1उसने लिखा, “ठीक है , लेकिन आपको थोड़ा इंतज़ार करना होगा, मैं कुछ जरूरी काम कर रही हूँ, उसके बाद ही आपसे बात कर सकूँगी ” 🙂 🙂

OK…. >:D —सूरज की ओर से लिखकर आ गया।

उसके बाद नीलिमा अपने प्रोजेक्ट के काम में व्यस्त हो गए और दो घंटे कब बीत गए, उसे पता ही नहीं चला। काम पूरा करके जैसे ही वो अपना कम्प्युटर बंद करने वाली थी, तभी उसे सूरज का खयाल आया, ओह, में तो भूल ही  गयी थी, येही सोच उसके शब्दों में बदल कर स्क्रीन पर आ गयी।

सूरज नें तुरंत जवाब दिया, ‘कोई बात नहीं,में समझ सकता हूँ , और हाँ इतने समय में मेरा आपसे दोस्ती करने का इरादा और पक्का हो गया है।’

‘ऐसा क्यूँ ‘ नीलिमा ने हैरान होते हुए लिखा।

‘क्यूंकी जो लड़की  एक कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट को सिर्फ कुछ देर बात करने के लिए दो घंटे का इंतज़ार करवा सकती है , वो कम से कम आज के जमाने की तितली टाइप लड़की तो हो नहीं सकती’ 🙂

‘आपको कैसे पता की मैं काम ही कर रही थी, किसी और से बात करके अपना समय नहीं लगा रही थी, यह भी तो हो सकता है न ‘….

‘हाँ हाँ क्यूँ नहीं हो सकता, लेकिन मैडम शायद आप एक बात भूल रहीं हैं , मुझे मेरी कंपनी ने वाइस प्रेसिडेंट की पोस्ट यूं ही नहीं दे दी। में इन्सानों के चेहरे और कागज पर लिखे हुए शब्दों के असली अर्थ  फौरन पढ़ भी लेता हूँ और समझ भी लेता हूँ ।’

‘हम्म’ नीलिमा ने कुछ सोचते हुए लिखा।’अच्छा चलो मान लिया की आप मुझे अच्छी तरह से पहचान गए, लेकिन मुझे कैसे पता चलेगा की आपने जो कुछ लिखा है वो सब सही है, बनावट नहीं है। ‘….नीलिमा ने कुछ सोचते हुए आगे लिखा ।

‘बिलकुल ठीक कहा तुमने नीलिमा तुम ही बताओ, में तुम्हें अपनी बातों का कैसे यकीन दिलवाऊँ। जो तुम कहो मैं करने के लिए तैयार हूँ। ‘ सूरज के शब्दों से आत्मीयता की झलक मिल रही थी।

मेरे कुछ सवालों के जवाब दीजिये…नीलिमा ने लिखा,

हाँ हाँ, जरूर….सूरज की ओर से तुरंत जवाब आया।  उसके बाद नीलिमा नें सवालों की बौछार सी कर दी लेकिन सूरज बिना धैर्य खोये, जवाब देता रहा।

नीलिमा ने कुछ सोचते हुए, अपनी और सूरज की बातचीत की हिस्ट्री को चेक किया तो पाया की सूरज उसके सवालों के जवाब तुरंत दे रहा है , जिससे यह पता चलता है की उसके जवाब सच्चे हैं, क्यूँ झूठ बोलने वाला समय लेता है लेकिन सच बोलने में समय नहीं लगता है।

इतनी देर में नीलिमा ने सूरज के व्यक्तिगत जीवन के बारे में सब कुछ पता लगा लिया। “वो एक अनाथ था, जिसे उसके चाचा-चाची ने बड़े अहसानों के साथ पाला था, उस घर में अगर उसका कोई हमदर्द था तो वो थी उसकी चचेरी बहन नीलिमा। उम्र में छोटी पर अहसास में बहुत बड़ी। एक माँ की तरह उसने सूरज को सम्हाला था। नीलिमा ही सूरज के हर आँसू की मूक गवाह थी। माता-पिता ने नीलिमा की शादी कर दी तो नीलिमा ने अपने पति की सहमति से सूरज को अपने घर दिल्ली बुलवा लिया।

images (39)अब तक सूरज पढ़ लिख कर एक काबिल मैकानिकल इंजीनियर बन चुका था। और पढ़ाई पूरी होते ही भारत की प्रतिष्ठित तेल कंपनी ने सूरज को अपने यहाँ अच्छे पद पर नौकरी भी दे दी।

अब चाचा-चाची ने सूरज से अपने अहसानों का प्रतिफल मांगते हुए अपनी पसंद करी हुई लड़की से शादी करने को कहा, जिसे सूरज ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। शादी की रात ही सूरज की पत्नी ने सूरज से एक वचन ले लिया, की वो उससे पत्नी धर्म निभाने के लिए उस पर ज़ोर नहीं डालेग, जिसे सूरज ने, बेमन से ही सही लेकिन मान लिया। लगभग एक वर्ष तक चले इस विवाह में , सूरज की हर कोशिश को उसकी पत्नी नाकाम करती रही और आखिर में एक दिन जब सूरज कंपनी के काम से पेरिस गया था, तो उसकी पत्नी घर में ताला लगा कर, चाबी पड़ोस में देकर कहीं चली गयी।

वापस आपने पर सूरज को घर में पत्नी की जगह इंतज़ार करता हुआ तलकनामा मिला , जिसपर उसकी पत्नी के हस्ताक्षर थे। इस आघात ने सूरज को मौन कर दिया।

यहाँ फिर नीलिमा ने सूरज को सहारा दिया और उसे अपने साथ अपने घर ले आई।”

तो क्या नामों की समानता ने ही सूरज को उसकी ओर आकर्षित किया है….नीलिमा के मन में उठे सवाल ने शब्दों का रूप ले लिया।

 

 

 

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